न्यूज़ डेस्क : नई दिल्ली
जब से गुजरात की ओर से कहा गया है कि ड्रैगन फ्रूट कमल जैसा होता है इसलिए इसका नाम ‘कमलम’ होना चाहिए. कमल भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न भी है और गाँधीनगर में स्थित गुजरात बीजेपी मुख्यालय को भी ‘कमलम’ कहा जाता है. तब से ये फल चर्चा में है
हालाँकि मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने ड्रैगन फ्रूट का नाम बदलने के प्रस्ताव के पीछे किसी तरह की राजनीति से इनकार किया है.वहीं दूसरी ओर कच्छ, सौराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात के इलाक़े में ड्रैगन फ्रूट उगाने वाले किसानों का कहना है कि ऐसी घोषणाओं से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है.
ड्रैगन फ्रूट के पौधों में तीन साल बाद इतने फल आने लगते हैं जिन्हें व्यवसायिक तौर पर बेचा जा सकता है. हर पौधे से क़रीब 15-16 किलोग्राम के फल मिलते हैं. बाज़ार में इसे 250 रुपये से 300 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बेचा जाता है. ड्रैगन फ्रूट के सीज़न में बाज़ार में यह 150 रुपये से 400 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर उपलब्ध होता है.
हरीश भाई जो की इसकी खेती करते हैं उनके मुताबिक़, ड्रैगन फ्रूट में अच्छा फ़ायदा होता है. उनके मुताबिक़ अगर ड्रैगन फ्रूट के दाम कम भी हुए तो भी किसान आसानी से हर साल ढाई लाख रुपये की आमदनी कर लेता है.
ख़ास बात यह है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती में ज़्यादा श्रम की ज़रूरत नहीं होती है और कीटनाशक के लिए भी ज़्यादा ख़र्च नहीं करना होता है. उनके मुताबिक़ अगर निवेश करने के लिए पैसा हो और सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तो ड्रैगन फ्रूट की खेती काफ़ी फ़ायदेमंद है.
उनके मुताबिक़ ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसानों को 250 रुपये प्रति किलोग्राम की दर मिल जाती है. उनके मुताबिक़, इसकी खेती में ज़्यादा निवेश की ज़रूरत होती है, लेकिन तीन साल तक खेती करने पर निवेश जितनी आमदनी हो जाती है. ड्रैगन फ्रूट पथरीली ज़मीन पर भी उगाया जा सकता है.
उन्होंने यह भी बताया कि अब ड्रैगन फ्रूट से जैम और जैली बनाए जाने लगी हैं और इसके चलते इसकी माँग बढ़ेगी. धर्मेश के मुताबिक़, महँगा होने के चलते ग्रामीण इलाकों में इसकी कम माँग है लेकिन सूरत, वडोदरा जैसे शहरों में सारे फल बिक जाते हैं.
यह भी माना जाता है कि डेंगू के मरीज़ों में जब प्लेटलेट्स गिर जाते हैं तो ड्रैगन फ्रूट का इस्तेमाल काफ़ी लाभकारी होता है. इस विश्वास के चलते भी डेंगू के प्रकोप के समय में इसकी क़ीमत 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुँच जाती है.
गुजरात के अलावा केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी इसकी खेती होने लगी है.
गुजरात के कई किसान, ड्रैगन फ्रूट की खेती के बारे में जानने के लिए पुणे जाकर अध्ययन करते हैं. इसके अलावा लोग इंटरनेट के ज़रिए जानकारी जुटाकर प्रयोग करते हैं.
गुजरात के किसान, इसे उगाना इसलिए पसंद करने लगे हैं क्योंकि यह किसी भी तरह की ज़मीन में उगाया जा सकता है. यह विपरीत मौसम में हो सकता है, बहुत पानी की भी ज़रूरत नहीं होती है और फल के आने से पहले बिक्री हो जाती है.
ड्रैगन फ्रूट दो रंग में होते हैं- लाल और सफेद. लाल रंग वाली वैरायटी की माँग ज़्यादा होती है. फल को बीच से काटकर उसे निकाला जाता है. यह काफ़ी मुलायम भी होता है और इससे शेक भी बनाया जाता है.