भोजपुरी लाइव नई दिल्ली. वकीलों द्वारा दी जाने वाली सेवाएं उपभोक्ता अधिनियम के दायरे में आती हैं लेकिन क्या किसी वकील पर इसलिए उपभोक्ता अधिनियम के तहत एक्शन हो सकता है क्योंकि उसने अपने क्लाइंट का पक्ष ठीक से कोर्ट के सामने नहीं रखा. कंज्यूमर कोर्ट ने इस मामले में वकील को जिम्मेदार ठहराते हुए अपना फैसला सुनाया था. अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि सभी पेशेवरों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं को भी इसके दायरे में लाया जाता है तो अधिनियम के तहत स्थापित आयोगों में मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी. ऐसा इसलिए क्योंकि उपभोक्ता अधिनियम के तहत प्रदान किया गया उपाय सस्ता और कम समय वाला है. यह देखते हुए कि कानूनी पेशे की तुलना किसी अन्य पारंपरिक पेशे से नहीं की जा सकती, बेंच ने कहा कि इसका नेचर कमर्शियल नहीं है बल्कि वकालत सेवा से संबंधित नोबल प्रोफेशन है.
जस्टिस डिलीवरी सिस्टम में वकीलों की भूमिका अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जस्टिस डिलीवरी सिस्टम में वकीलों की भूमिका अनिवार्य है. हमारे संविधान को जीवंत बनाए रखने के लिए न्यायशास्त्र का विकास केवल वकीलों के सकारात्मक योगदान से ही संभव है. वकीलों से उम्मीद की जाती है कि वे न्याय की रक्षा के लिए निडर और स्वतंत्र हों. नागरिकों के अधिकार, कानून के शासन को कायम रखने और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए भी वकीलों की भूमिका अहम है.